शास्त्रों में पूजा में आरती का खास महत्व बताया गया है. आरती हिन्दू धर्म की पूजा परंपरा का एक अत्यंत महत्वपूर्ण हिस्सा है. हम सभी ने ईश्वर की आराधना करते वक्त आरती जरूर की होगी. आरती पूजा पाठ का एक अभिन्न हिस्सा है. माना जाता है कि सच्चे मन और श्रृद्धा से की गई आरती बेहद कल्याणकारी होती है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि पूजा पाठ में आरती का क्या महत्व है. शास्त्रों में पूजा में आरती का खास महत्व बताया गया है. हम आपको आज बताते हैं कि पूजा पाठ में आरती का क्या महत्व है.
धार्मिक मान्यता है कि अगर कोई व्यक्ति मंत्र नहीं जानता, पूजा की विधि नहीं जानता लेकिन आरती कर लेता है, तो भगवान उसकी पूजा को पूर्ण रूप से स्वीकार कर लेते हैं. "स्कन्द पुराण" में आरती के महत्व की चर्चा सबसे पहले की गई है. आरती हिन्दू धर्म की पूजा परंपरा का एक अत्यंत महत्वपूर्ण हिस्सा है.
किसी भी पूजा, यज्ञ, अनुष्ठान के अंत में की आरती की जाती है. एक थाल में ज्योति और कुछ विशेष वस्तुएं रखकर भगवान के सामने घुमाते हैं. सबसे ज्यादा महत्व होता है आरती के साथ गाई जाने वाली स्तुति का. आरती की थाल को इस प्रकार घुमाना चाहिए कि ॐ की आकृति बन सके. आरती को भगवान के चरणों में चार बार, नाभि में दो बार, मुख पर एक बार और सम्पूर्ण शरीर पर सात बार घुमाना चाहिए. आरती की थाल में कपूर या घी के दीपक दोनों से ही ज्योति प्रज्ज्वलित की जा सकती है.
आरती जिसे सुनकर, जिसे गाकर श्रद्धालु धन्य समझते हैं। किसी भी देवी-देवता या अपने आराध्य, अपने ईष्ट देव की स्तुति की उपासना की एक विधि है। आरती के दौरान भक्तजन गाने के साथ साथ धूप दीप एवं अन्य सुगंधित पदार्थों से एक विशेष विधि से अपने आराध्य के सामने घुमाते हैं। मंदिरों में सुबह उठते ही सबसे पहले आराध्य देव के सामने नतमस्तक हो उनकी पूजा के बाद आरती की जाती है। इसी क्रम को सांय की पूजा के बाद भी दोहराया जाता है व मंदिर के कपाट रात्रि में सोने से पहले आरती के बाद ही बंद किये जाते हैं। मान्यता है कि आरती करने वाले ही नहीं बल्कि आरती में शामिल होने वाले पर भी प्रभु की कृपा होती है। भक्त को आरती का बहुत पुण्य मिलता है। आरती करते समय देवी-देवता को तीन बार पुष्प अर्पित किये जाते हैं। मंदिरों में तो पूरे साज-बाज के साथ आरती की जाती है। कई धार्मिक स्थलों पर तो आरती का नजारा देखने लायक होता है। बनारस के घाट हों या हरिद्वार, प्रयाग हो या फिर मां वैष्णों का दरबार यहां की आरती में बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं। तमिल में आरती को ही दीप आराधनई कहा जाता है।
आरती करते समय भक्त का मन स्वच्छ होना चाहिये अर्थात उसे पूरे समर्पण के साथ आरती करनी चाहिये तभी उसे आरती का पुण्य प्राप्त होता है। माना जाता है कि भक्त इस समय अपने अंतर्मन से ईश्वर को पुकारते हैं इसलिये इसे पंचारती भी कहा जाता है। इसमें भक्त के शरीर के पांचों भाग मस्तिष्क, हृद्य, कंधे, हाथ व घुटने यानि साष्टांग होकर आरती करता है इस आरती को पंच-प्राणों की प्रतीक आरती माना जाता है। कुंडली शॉप के इस खंड में आप विभिन्न देवी-देवताओं की आरती का पाठ कर सकते हैं।
श्री गणेशजी की आरती |
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा। माता जाकी पार्वती पिता महादेवा ।। |
एकदन्त दयावन्त चारभुजाधारी। माथे पर तिलक सोहे मूसे की सवारी॥ |
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा। माता जाकी पार्वती पिता महादेवा ।। |
पान चढ़े फूल चढ़े और चढ़े मेवा। लड्डुअन का भोग लगे सन्त करें ।। |
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा। माता जाकी पार्वती पिता महादेवा ।। |
अन्धे को आंख देत, कोढ़िन को काया। बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया॥ |
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा। माता जाकी पार्वती पिता महादेवा ।। |
सूर’ श्याम शरण आए सफल कीजे सेवा। माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥ |
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा। माता जाकी पार्वती पिता महादेवा ।। |
श्री लक्ष्मीजी की आरती |
ओम जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता। तुमको निशिदिन सेवत, हरि विष्णु विधाता॥ ॐ जय... |
उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता। सूर्य-चंद्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता॥ ॐ जय... |
दुर्गा रुप निरंजनी, सुख सम्पत्ति दाता। जो कोई तुमको ध्यावत, ऋद्धि-सिद्धि धन पाता॥ ॐ जय... |
तुम पाताल-निवासिनि, तुम ही शुभदाता। कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनी, भवनिधि की त्राता॥ ॐ जय... |
जिस घर में तुम रहतीं, सब सद्गुण आता। सब सम्भव हो जाता, मन नहीं घबराता॥ ॐ जय... |
तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न कोई पाता। खान-पान का वैभव, सब तुमसे आता॥ ॐ जय... |
शुभ-गुण मंदिर सुंदर, क्षीरोदधि-जाता। रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता॥ ॐ जय... |
महालक्ष्मीजी की आरती, जो कोई जन गाता। उर आनन्द समाता, पाप उतर जाता॥ ॐ जय... |
श्री विष्णुजी की आरती |
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे। भक्तजनों के संकट क्षण में दूर करे॥ ॐ जय...॥ |
जो ध्यावै फल पावै, दुख बिनसे मन का। सुख-संपत्ति घर आवै, कष्ट मिटे तन का॥ ॐ जय...॥ |
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी। तुम बिनु और न दूजा, आस करूं जिसकी॥ ॐ जय...॥ |
तुम पूरन परमात्मा, तुम अंतरयामी॥ पारब्रह्म परेमश्वर, तुम सबके स्वामी॥ ॐ जय...॥ |
तुम करुणा के सागर तुम पालनकर्ता। मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥ ॐ जय...॥ |
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति। किस विधि मिलूं दयामय! तुमको मैं कुमति॥ ॐ जय...॥ |
दीनबंधु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे। अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥ ॐ जय...॥ |
विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा। श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा॥ ॐ जय...॥ |
तन-मन-धन और संपत्ति, सब कुछ है तेरा। तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा॥ ॐ जय...॥ |
जगदीश्वरजी की आरती जो कोई नर गावे। कहत शिवानंद स्वामी, मनवांछित फल पावे॥ ॐ जय...॥ |
श्री शिवजी की आरती |
जय शिव ओंकारा, ॐ जय शिव ओंकारा । ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा ॥ ....ॐ जय शिव |
एकानन चतुरानन पंचानन राजे । हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ....ॐ जय शिव |
दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे । त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे ॥ ....ॐ जय शिव |
अक्षमाला वनमाला मुण्डमाला धारी । त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी ॥ ....ॐ जय शिव |
श्वेतांबर पीतांबर बाघंबर अंगे । सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ....ॐ जय शिव |
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूलधारी । सुखकारी दुखहारी जगपालन कारी ॥ ....ॐ जय शिव |
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका । प्रणवाक्षर में शोभित ये तीनों एका ॥ ....ॐ जय शिव |
लक्ष्मी व सावित्री पार्वती संगा । पार्वती अर्द्धांगी, शिवलहरी गंगा ॥ ....ॐ जय शिव |
पर्वत सोहैं पार्वती, शंकर कैलासा । भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा ॥ ....ॐ जय शिव |
जटा में गंग बहत है, गल मुण्डन माला । शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला ॥ ....ॐ जय शिव |
काशी में विराजे विश्वनाथ, नंदी ब्रह्मचारी । नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी ॥ ....ॐ जय शिव |
त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोइ नर गावे । कहत शिवानंद स्वामी सुख संपति पावे ॥ ....ॐ जय शिव |
श्रीलक्ष्मीनारायणजी की आरती |
ॐ जय लक्ष्मी रमना, स्वामी जय लक्ष्मी रमणा सत्य नारायण स्वामी, जन पातक हरणा, ॐ जय लक्ष्मी |
रतन जड़ित सिंहासन अद्भुत छवि राजे नारद करत निरंतर, घंटा ध्वनि बाजे, ॐ जय लक्ष्मी |
प्रगट भए कलि कारण, द्विज को दरश दियो बूढो ब्राह्मण बनकर कंचन महल कियो, ॐ जय लक्ष्मी |
दुर्बल भील कराल जिन पर कृपा करी चंद्रचूड़ एक राजा जिनकी विपति हरी, ॐ जय लक्ष्मी |
वैश्य मनोरथ पायो श्रद्धा तज दिनी सो फल भोग्यो प्रभुजी, फिर स्तुति किन्ही, ॐ जय लक्ष्मी |
भाव भक्ति के कारण, छिन-छिन रूप धरयो श्रद्धा धारण किन्ही तिनको काज सरयो, ॐ जय लक्ष्मी |
ग्वाल बाल संग राजा वन में भक्ति करी मन वांछित फल दीन्हो, दीन दयाल हरी, ॐ जय लक्ष्मी |
चढ़त प्रसाद सवायो कदली फल मेवा धूप दीप तुलसी से राजी सत्यदेव, ॐ जय लक्ष्मी |
श्री सत्यनारायण जी की आरती जो कोई नर गावे तन मन सुख सम्पति, मन वांक्षित फल पावे, ॐ जय लक्ष्मी |
श्री रामजी की स्तुति |
श्री रामचन्द्र कृपालु भजुमन हरण भवभय दारुणं । नव कंज लोचन कंज मुख कर कंज पद कंजारुणं ॥ |
कन्दर्प अगणित अमित छवि नव नील नीरद सुन्दरं । पटपीत मानहुँ तडित रुचि शुचि नोमि जनक सुतावरं ॥ |
भजु दीनबन्धु दिनेश दानव दैत्य वंश निकन्दनं । रघुनन्द आनन्द कन्द कोशल चन्द दशरथ नन्दनं ॥ |
शिर मुकुट कुंडल तिलक चारु उदारु अङ्ग विभूषणं । आजानु भुज शर चाप धर संग्राम जित खरदूषणं ॥ |
इति वदति तुलसीदास शंकर शेष मुनि मन रंजनं । मम् हृदय कंज निवास कुरु कामादि खलदल गंजनं ॥ |
मन जाहि राच्यो मिलहि सो वर सहज सुन्दर सांवरो । करुणा निधान सुजान शील स्नेह जानत रावरो ॥ |
एहि भांति गौरी असीस सुन सिय सहित हिय हरषित अली। तुलसी भवानिहि पूजी पुनि-पुनि मुदित मन मन्दिर चली ॥ |
॥सोरठा॥ |
जानी गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि । मंजुल मंगल मूल वाम अङ्ग फरकन लगे। |
श्री हनुमानजी की आरती |
आरती कीजै हनुमानलला की। दुष्टदलन रघुनाथकला की।। जाके बल से गिरिवर कांपे। रोगदोष जाके निकट न झांके।। |
अंजनि पुत्र महाबलदायी। संतान के प्रभु सदा सहाई। दे बीरा रघुनाथ पठाए। लंका जारी सिया सुध लाए। |
लंका सो कोट समुद्र सी खाई। जात पवनसुत बार न लाई। लंका जारी असुर संहारे। सियारामजी के काज संवारे। |
लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे। आणि संजीवन प्राण उबारे। पैठी पताल तोरि जमकारे। अहिरावण की भुजा उखाड़े। |
बाएं भुजा असुर दल मारे। दाहिने भुजा संतजन तारे। सुर-नर-मुनि जन आरती उतारे। जै जै जै हनुमान उचारे। |
कंचन थार कपूर लौ छाई। आरती करत अंजना माई। लंकविध्वंस कीन्ह रघुराई। तुलसीदास प्रभु कीरति गाई। |
जो हनुमानजी की आरती गावै। बसी बैकुंठ परमपद पावै। आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्टदलन रघुनाथ कला की। |
श्री बालाजी आरती |
ॐ जय हनुमत वीरा स्वामी जय हनुमत वीरा संकट मोचन स्वामी तुम हो रनधीरा ||ॐ जय || |
पवन पुत्र अंजनी सूत महिमा अति भारी दुःख दरिद्र मिटाओ संकट सब हारी ||ॐ जय || |
बाल समय में तुमने रवि को भक्ष लियो देवन स्तुति किन्ही तुरतहिं छोड़ दियो ||ॐ जय || |
कपि सुग्रीव राम संग मैत्री करवाई अभिमानी बलि मेटयो कीर्ति रही छाई ||ॐ जय || |
जारि लंक सिय-सुधि ले आए, वानर हर्षाये कारज कठिन सुधारे, रघुबर मन भाये ||ॐ जय || |
शक्ति लगी लक्ष्मण को, भारी सोच भयो लाय संजीवन बूटी, दुःख सब दूर कियो ||ॐ जय || |
रामहि ले अहिरावण, जब पाताल गयो ताहि मारी प्रभु लाय, जय जयकार भयो ||ॐ जय || |
राजत मेहंदीपुर में, दर्शन सुखकारी मंगल और शनिश्चर, मेला है जारी ||ॐ जय || |
श्री बालाजी की आरती, जो कोई नर गावे कहत इन्द्र हर्षित मनवांछित फल पावे ||ॐ जय || |
श्री सूर्यदेवजी की आरती |
ॐ जय सूर्य भगवान, जय हो दिनकर भगवान। जगत् के नेत्रस्वरूपा, तुम हो त्रिगुण स्वरूपा। धरत सब ही तव ध्यान, ॐ जय सूर्य भगवान।। |
सारथी अरुण हैं प्रभु तुम, श्वेत कमलधारी। तुम चार भुजाधारी।। अश्व हैं सात तुम्हारे, कोटि किरण पसारे। तुम हो देव महान।। ।।ॐ जय सूर्य भगवान...।। |
ऊषाकाल में जब तुम, उदयाचल आते। सब तब दर्शन पाते।। फैलाते उजियारा, जागता तब जग सारा। करे सब तब गुणगान।। ।।ॐ जय सूर्य भगवान...।। |
संध्या में भुवनेश्वर अस्ताचल जाते। गोधन तब घर आते।। गोधूलि बेला में, हर घर हर आंगन में। हो तव महिमा गान।। ।।ॐ जय सूर्य भगवान...।। |
देव-दनुज नर-नारी, ऋषि-मुनिवर भजते। आदित्य हृदय जपते।। स्तोत्र ये मंगलकारी, इसकी है रचना न्यारी। दे नव जीवनदान।। ।।ॐ जय सूर्य भगवान...।। |
तुम हो त्रिकाल रचयिता, तुम जग के आधार। महिमा तब अपरम्पार।। प्राणों का सिंचन करके भक्तों को अपने देते। बल, बुद्धि और ज्ञान।। ।।ॐ जय सूर्य भगवान...।। |
भूचर जलचर खेचर, सबके हों प्राण तुम्हीं। सब जीवों के प्राण तुम्हीं।। वेद-पुराण बखाने, धर्म सभी तुम्हें माने। तुम ही सर्वशक्तिमान।। ।।ॐ जय सूर्य भगवान...।। |
पूजन करतीं दिशाएं, पूजे दश दिक्पाल। तुम भुवनों के प्रतिपाल।। ऋतुएं तुम्हारी दासी, तुम शाश्वत अविनाशी। शुभकारी अंशुमान।। ।।ॐ जय सूर्य भगवान...।। |
ॐ जय सूर्य भगवान, जय हो दिनकर भगवान। जगत् के नेत्रस्वरूपा, तुम हो त्रिगुण स्वरूपा।स्वरूपा।। धरत सब ही तव ध्यान, ॐ जय सूर्य भगवान।। |
श्री जगदीशजी की आरती |
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे । भक्त जनों के संकट, दास जनों के संकट, क्षण में दूर करे ॥ ॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥ |
जो ध्यावे फल पावे, दुःख बिनसे मन का । सुख सम्पति घर आवे, कष्ट मिटे तन का ॥ ॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥ |
मात पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी । तुम बिन और न दूजा, आस करूं मैं जिसकी॥ ॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥ |
तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी । पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सब के स्वामी॥ ॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥ |
तुम करुणा के सागर, तुम पालनकर्ता । मैं सेवक तुम स्वामी, कृपा करो भर्ता॥ ॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥ |
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति । किस विधि मिलूं दयामय, तुमको मैं कुमति॥ ॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥ |
दीन-बन्धु दुःख-हर्ता, ठाकुर तुम मेरे । अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे ॥ ॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥ |
विषय-विकार मिटाओ, पाप हरो देवा । श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, सन्तन की सेवा ॥ ॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥ |
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे । भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे ॥ |
श्री कुंजबिहारीजी की आरती |
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥ आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥ |
गले में बैजंती माला, बजावै मुरली मधुर बाला । श्रवण में कुण्डल झलकाला, नंद के आनंद नंदलाला । गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली । लतन में ठाढ़े बनमाली, भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक, चंद्र सी झलक, ललित छवि श्यामा प्यारी की, श्रीगिरिधर कृष्णमुरारी की ॥ ॥ आरती कुंजबिहारी की...॥ |
कनकमय मोर मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसैं । गगन सों सुमन रासि बरसै । बजे मुरचंग, मधुर मिरदंग, ग्वालिन संग, अतुल रति गोप कुमारी की, श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥ ॥ आरती कुंजबिहारी की...॥ |
जहां ते प्रकट भई गंगा, सकल मन हारिणि श्री गंगा । स्मरन ते होत मोह भंगा बसी शिव सीस, जटा के बीच, हरै अघ कीच, चरन छवि श्रीबनवारी की, श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥ ॥ आरती कुंजबिहारी की...॥ |
चमकती उज्ज्वल तट रेनू, बज रही वृंदावन बेनू । चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू हंसत मृदु मंद, चांदनी चंद, कटत भव फंद, टेर सुन दीन दुखारी की, श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥ ॥ आरती कुंजबिहारी की...॥ |
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥ आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥ |
श्री गोवर्धनजी की आरती |
श्री गोवर्धन महाराज, ओ महाराज, तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ। ॥ श्री गोवर्धन महाराज...॥ |
तोपे पान चढ़े, तोपे फूल चढ़े, तोपे चढ़े दूध की धार। ॥ श्री गोवर्धन महाराज...॥ |
तेरे गले में कंठा साज रेहेओ, ठोड़ी पे हीरा लाल। ॥ श्री गोवर्धन महाराज...॥ |
तेरे कानन कुंडल चमक रहेओ, तेरी झांकी बनी विशाल। ॥ श्री गोवर्धन महाराज...॥ |
तेरी सात कोस की परिकम्मा, चकलेश्वर है विश्राम। श्री गोवर्धन महाराज, ओ महाराज, तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ। |
गिरिराज धारण प्रभु तेरी शरण। करो भक्त का बेड़ा पार तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ। |
श्री गोवर्धन महाराज, ओ महाराज, तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ। ॥ श्री गोवर्धन महाराज...॥ |
श्री युगलकिशोरजी की आरती |
आरती युगल किशोर की कीजै । तन मन धन न्योछावर कीजै ॥ |
गौरश्याम मुख निरखन लीजै । हरि का रूप नयन भरि पीजै ॥ |
रवि शशि कोटि बदन की शोभा । ताहि निरखि मेरो मन लोभा ॥ |
ओढ़े नील पीत पट सारी । कुंजबिहारी गिरिवरधारी ॥ |
फूलन सेज फूल की माला । रत्न सिंहासन बैठे नंदलाला ॥ |
कंचन थार कपूर की बाती । हरि आए निर्मल भई छाती ॥ |
श्री पुरुषोत्तम गिरिवरधारी । आरती करें सकल नर नारी ॥ |
नंदनंदन बृजभान किशोरी । परमानंद स्वामी अविचल जोरी ॥ |
आरती युगल किशोर की कीजै । तन मन धन न्योछावर कीजै ॥ |
श्री बांके बिहारीजी की आरती |
श्री बांके बिहारी तेरी आरती गाऊं, हे गिरिधर तेरी आरती गाऊं । आरती गाऊं प्यारे आपको रिझाऊं, श्याम सुन्दर तेरी आरती गाऊं । ॥ श्री बांके बिहारी...॥ |
मोर मुकुट प्यारे शीश पे सोहे, प्यारी बंसी मेरो मन मोहे । देख छवि बलिहारी मैं जाऊं । ॥ श्री बांके बिहारी...॥ |
चरणों से निकली गंगा प्यारी, जिसने सारी दुनिया तारी । मैं उन चरणों के दर्शन पाऊं । ॥ श्री बांके बिहारी...॥ |
दास अनाथ के नाथ आप हो, दुःख सुख जीवन प्यारे साथ आप हो । हरी चरणों में शीश झुकाऊं । ॥ श्री बांके बिहारी...॥ |
श्री हरीदास के प्यारे तुम हो। मेरे मोहन जीवन धन हो। देख युगल छवि बलि बलि जाऊं। ॥ श्री बांके बिहारी...॥ |
श्री बांके बिहारी तेरी आरती गाऊं, हे गिरिधर तेरी आरती गाऊं। आरती गाऊं प्यारे आपको रिझाऊं, श्याम सुन्दर तेरी आरती गाऊं। |
श्री कुबेरजी की आरती |
ॐ जै यक्ष कुबेर हरे, स्वामी जै यक्ष जै यक्ष कुबेर हरे । शरण पड़े भगतों के, भण्डार कुबेर भरे । ॥ ॐ जै यक्ष कुबेर हरे...॥ |
शिव भक्तों में भक्त कुबेर बड़े, स्वामी भक्त कुबेर बड़े । दैत्य दानव मानव से, कई-कई युद्ध लड़े ॥ ॥ ॐ जै यक्ष कुबेर हरे...॥ |
स्वर्ण सिंहासन बैठे, सिर पर छत्र फिरे । योगिनी मंगल गावैं, सब जय जय कार करैं ॥ ॥ ॐ जै यक्ष कुबेर हरे...॥ |
गदा त्रिशूल हाथ में, शस्त्र बहुत धरे । दुख भय संकट मोचन, धनुष टंकार करें ॥ ॥ ॐ जै यक्ष कुबेर हरे...॥ |
भांति भांति के व्यंजन बहुत बने, स्वामी व्यंजन बहुत बने । मोहन भोग लगावैं, साथ में उड़द चने ॥ ॥ ॐ जै यक्ष कुबेर हरे...॥ |
बल बुद्धि विद्या दाता, हम तेरी शरण पड़े । अपने भक्त जनों के, सारे काम संवारे ॥ ॥ ॐ जै यक्ष कुबेर हरे...॥ |
मुकुट मणी की शोभा, मोतियन हार गले । अगर कपूर की बाती, घी की जोत जले ॥ ॥ ॐ जै यक्ष कुबेर हरे...॥ |
यक्ष कुबेर जी की आरती, जो कोई नर गावे । कहत प्रेमपाल स्वामी, मनवांछित फल पावे ॥ ॥ इति श्री कुबेर आरती ॥ |
श्री शनिदेवजी की आरती |
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी । सूरज के पुत्र प्रभु छाया महतारी ॥ ॥ जय जय श्री शनिदेव..॥ |
श्याम अंक वक्र दृष्ट चतुर्भुजा धारी । नीलाम्बर धार नाथ गज की असवारी ॥ ॥ जय जय श्री शनिदेव..॥ |
क्रीट मुकुट शीश रजित दिपत है लिलारी । मुक्तन की माला गले शोभित बलिहारी ॥ ॥ जय जय श्री शनिदेव..॥ |
मोदक मिष्ठान पान चढ़त हैं सुपारी । लोहा तिल तेल उड़द महिषी अति प्यारी ॥ ॥ जय जय श्री शनिदेव..॥ |
देव दनुज ऋषि मुनि सुमरिन नर नारी । विश्वनाथ धरत ध्यान शरण हैं तुम्हारी ॥ ॥ जय जय श्री शनिदेव..॥ |
श्री कालभैरवजी की आरती |
जय भैरव देवा, प्रभु जय भैरव देवा। जय काली और गौरा देवी कृत सेवा।। |
तुम्हीं पाप उद्धारक दुख सिंधु तारक। भक्तों के सुख कारक भीषण वपु धारक।। |
वाहन शवन विराजत कर त्रिशूल धारी। महिमा अमिट तुम्हारी जय जय भयकारी।। |
तुम बिन देवा सेवा सफल नहीं होंवे। चौमुख दीपक दर्शन दुख सगरे खोंवे।। |
तेल चटकि दधि मिश्रित भाषावलि तेरी। कृपा करिए भैरव करिए नहीं देरी।। |
पांव घुंघरू बाजत अरु डमरू डमकावत।। बटुकनाथ बन बालक जन मन हर्षावत।। |
बटुकनाथ जी की आरती जो कोई नर गावें। कहें धरणीधर नर मनवांछित फल पावें।। |
जय भैरव देवा, प्रभु जय भैरव देवा। जय काली और गौरा देवी कृत सेवा।। |
श्री पुरुषोत्तमदेवजी की आरती |
जय पुरुषोत्तम देवा, स्वामी जय पुरुषोत्तम देवा। महिमा अमित तुम्हारी, सुर-मुनि करें सेवा॥ जय पुरुषोत्तम देवा॥ |
सब मासों में उत्तम, तुमको बतलाया। कृपा हुई जब हरि की, कृष्ण रूप पाया॥ जय पुरुषोत्तम देवा॥ |
पूजा तुमको जिसने सर्व सुक्ख दीना। निर्मल करके काया, पाप छार कीना॥ जय पुरुषोत्तम देवा॥ |
मेधावी मुनि कन्या, महिमा जब जानी। द्रोपदि नाम सती से, जग ने सन्मानी॥ जय पुरुषोत्तम देवा॥ |
विप्र सुदेव सेवा कर, मृत सुत पुनि पाया। धाम हरि का पाया, यश जग में छाया॥ जय पुरुषोत्तम देवा॥ |
नृप दृढ़धन्वा पर जब, तुमने कृपा करी। व्रतविधि नियम और पूजा, कीनी भक्ति भरी॥ जय पुरुषोत्तम देवा॥ |
शूद्र मणीग्रिव पापी, दीपदान किया। निर्मल बुद्धि तुम करके, हरि धाम दिया॥ जय पुरुषोत्तम देवा॥ |
पुरुषोत्तम व्रत-पूजा हित चित से करते। प्रभुदास भव नद से सहजही वे तरते॥ जय पुरुषोत्तम देवा॥ |
श्री सरस्वतीजी की आरती |
ॐ जय सरस्वती माता, जय जय सरस्वती माता । सद्गुण वैभव शालिनी, त्रिभुवन विख्याता ॥ जय.... |
चंद्रवदनि पद्मासिनी, ध्रुति मंगलकारी। सोहें शुभ हंस सवारी, अतुल तेजधारी ॥ जय..... |
बाएं कर में वीणा, दाएं कर में माला। शीश मुकुट मणी सोहें, गल मोतियन माला ॥ जय..... |
देवी शरण जो आएं, उनका उद्धार किया। पैठी मंथरा दासी, रावण संहार किया ॥ जय..... |
विद्या ज्ञान प्रदायिनी, ज्ञान प्रकाश भरो। मोह, अज्ञान, तिमिर का जग से नाश करो ॥ जय..... |
धूप, दीप, फल, मेवा मां स्वीकार करो। ज्ञानचक्षु दे माता, जग निस्तार करो ॥ जय..... |
मां सरस्वती की आरती जो कोई जन गावें। हितकारी, सुखकारी, ज्ञान भक्ती पावें ॥ जय..... |
जय सरस्वती माता, जय जय सरस्वती माता। सद्गुण वैभव शालिनी, त्रिभुवन विख्याता॥ जय..... |
ॐ जय सरस्वती माता, जय जय सरस्वती माता । सद्गुण वैभव शालिनी, त्रिभुवन विख्याता॥ जय..... |
माँ वैष्णो देवीजी की आरती |
जय वैष्णवी माता, मैया जय वैष्णवी माता। हाथ जोड़ तेरे आगे, आरती मैं गाता॥ |
शीश पे छत्र विराजे, मूरतिया प्यारी। गंगा बहती चरनन, ज्योति जगे न्यारी॥ |
ब्रह्मा वेद पढ़े नित द्वारे, शंकर ध्यान धरे। सेवक चंवर डुलावत, नारद नृत्य करे॥ |
सुन्दर गुफा तुम्हारी, मन को अति भावे। बार-बार देखन को, ऐ माँ मन चावे॥ |
भवन पे झण्डे झूलें, घंटा ध्वनि बाजे। ऊँचा पर्वत तेरा, माता प्रिय लागे॥ |
पान सुपारी ध्वजा नारियल, भेंट पुष्प मेवा। दास खड़े चरणों में, दर्शन दो देवा॥ |
जो जन निश्चय करके, द्वार तेरे आवे। उसकी इच्छा पूरण, माता हो जावे॥ |
इतनी स्तुति निश-दिन, जो नर भी गावे। कहते सेवक ध्यानू, सुख सम्पत्ति पावे॥ |
जय वैष्णवी माता, मैया जय वैष्णवी माता। हाथ जोड़ तेरे आगे, आरती मैं गाता॥ |
माता पार्वतीजी की आरती |
जय पार्वती माता जय पार्वती माता ब्रह्म सनातन देवी शुभ फल की दाता। जय पार्वती माता |
अरिकुल पद्मा विनासनी जय सेवक त्राता जग जीवन जगदम्बा हरिहर गुण गाता। जय पार्वती माता |
सिंह का वाहन साजे कुंडल है साथा देव बन्धु जस गावत नृत्य कर ताथा। जय पार्वती माता |
सतयुग शील अतिसुन्दर नाम सती कहलाता हेमांचल घर जन्मी सखियन रंगराता। जय पार्वती माता |
शुम्भ निशुम्भ विदारे हेमांचल स्थाता सहस भुजा तनु धरिके चक्र लियो हाथा। जय पार्वती माता |
सृष्टि रूप तुही जननी शिव संग रंगराता नंदी भृंगी बीन लाही सारा मदमाता। जय पार्वती माता |
देवन अरज करत हम चित को लाता गावत दे दे ताली मन में रंगराता। जय पार्वती माता |
श्री प्रताप आरती मैया की जो कोई गाता सदा सुखी रहता सुख संपति पाता। जय पार्वती माता |
श्री अम्बेजी की आरती |
अम्बे तू है जगदम्बे काली, जय दुर्गे खप्पर वाली | तेरे ही गुण गायें भारती, ओ मैया हम सब उतारें तेरी आरती || |
तेरे भक्त जनों पे माता, भीर पड़ी है भारी | दानव दल पर टूट पडो माँ, करके सिंह सवारी || सौ सौ सिंहों से तु बलशाली, दस भुजाओं वाली | दुखिंयों के दुखडें निवारती, ओ मैया हम सब उतारें तेरी आरती || |
माँ बेटे का है इस जग में, बड़ा ही निर्मल नाता | पूत कपूत सूने हैं पर, माता ना सुनी कुमाता || सब पर करुणा दरसाने वाली, अमृत बरसाने वाली | दुखियों के दुखडे निवारती, ओ मैया हम सब उतारें तेरी आरती || |
नहीं मांगते धन और दौलत, न चाँदी न सोना | हम तो मांगे माँ तेरे मन में, इक छोटा सा कोना || सबकी बिगडी बनाने वाली, लाज बचाने वाली | सतियों के सत को संवारती, ओ मैया हम सब उतारें तेरी आरती || |
श्री दुर्गाजी की आरती |
जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी। तुमको निशदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिव री।। जय अम्बे गौरी...। |
मांग सिंदूर बिराजत, टीको मृगमद को। उज्ज्वल से दोउ नैना, चंद्रबदन नीको।। जय अम्बे गौरी...। |
कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजै। रक्तपुष्प गल माला, कंठन पर साजै।। जय अम्बे गौरी...। |
केहरि वाहन राजत, खड्ग खप्परधारी। सुर-नर मुनिजन सेवत, तिनके दुःखहारी।। जय अम्बे गौरी...। |
कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती। कोटिक चंद्र दिवाकर, राजत समज्योति।। जय अम्बे गौरी...। |
शुम्भ निशुम्भ बिडारे, महिषासुर घाती। धूम्र विलोचन नैना, निशिदिन मदमाती।। जय अम्बे गौरी...। |
चण्ड-मुण्ड संहारे, शौणित बीज हरे। मधु कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे।। जय अम्बे गौरी...। |
ब्रह्माणी, रुद्राणी, तुम कमला रानी। आगम निगम बखानी, तुम शिव पटरानी।। जय अम्बे गौरी...। |
चौंसठ योगिनि मंगल गावैं, नृत्य करत भैरू। बाजत ताल मृदंगा, अरू बाजत डमरू।। जय अम्बे गौरी...। |
तुम ही जग की माता, तुम ही हो भरता। भक्तन की दुःख हरता, सुख सम्पत्ति करता।। जय अम्बे गौरी...। |
भुजा चार अति शोभित, खड्ग खप्परधारी। मनवांछित फल पावत, सेवत नर नारी।। जय अम्बे गौरी...। |
कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती। श्री मालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योति।। जय अम्बे गौरी...। |
श्री अम्बेजी की आरती जो कोई नर गावै। कहत शिवानंद स्वामी, सुख-सम्पत्ति पावै।। जय अम्बे गौरी...। |
श्री गंगा मां की आरती |
ॐ जय गंगे माता, मैया जय गंगे माता। जो नर तुमको ध्याता, मनवांछित फल पाता। ॐ जय गंगे माता, मैया जय गंगे माता। |
चंद्र सी ज्योति तुम्हारी, जल निर्मल आता। शरण पड़े जो तेरी, सो नर तर जाता। ॐ जय गंगे माता, मैया जय गंगे माता। |
पुत्र सगर के तारे, सब जग को ज्ञाता। कृपा दृष्टि हो तुम्हारी, त्रिभुवन सुख दाता। ॐ जय गंगे माता, मैया जय गंगे माता। |
एक बार जो प्राणी, शरण तेरी आता। यम की त्रास मिटाकर, परमगति पाता। ॐ जय गंगे माता, मैया जय गंगे माता। |
आरति मातु तुम्हारी, जो नर नित गाता। सेवक वही सहज में, मुक्ति को पाता। ॐ जय गंगे माता, मैया जय गंगे माता। |
श्री तुलसीजी की आरती |
जय जय तुलसी माता सब जग की सुख दाता, वर दाता जय जय तुलसी माता ।। |
सब योगों के ऊपर, सब रोगों के ऊपर रुज से रक्षा करके भव त्राता जय जय तुलसी माता।। |
बटु पुत्री हे श्यामा, सुर बल्ली हे ग्राम्या विष्णु प्रिये जो तुमको सेवे, सो नर तर जाता जय जय तुलसी माता ।। |
हरि के शीश विराजत, त्रिभुवन से हो वन्दित पतित जनो की तारिणी विख्याता जय जय तुलसी माता ।। |
लेकर जन्म विजन में, आई दिव्य भवन में मानवलोक तुम्ही से सुख संपति पाता जय जय तुलसी माता ।। |
हरि को तुम अति प्यारी, श्यामवरण तुम्हारी प्रेम अजब हैं उनका तुमसे कैसा नाता जय जय तुलसी माता ।। |
श्री अहोई मां की आरती |
जय अहोई माता, जय अहोई माता। तुमको निसदिन ध्यावत हर विष्णु विधाता। टेक।। |
ब्राह्मणी, रुद्राणी, कमला तू ही है जगमाता। सूर्य-चंद्रमा ध्यावत नारद ऋषि गाता।। जय।। |
माता रूप निरंजन सुख-सम्पत्ति दाता।। जो कोई तुमको ध्यावत नित मंगल पाता।। जय।। |
तू ही पाताल बसंती, तू ही है शुभदाता। कर्म-प्रभाव प्रकाशक जगनिधि से त्राता।। जय।। |
जिस घर थारो वासा वाहि में गुण आता।। कर न सके सोई कर ले मन नहीं धड़काता।। जय।। |
तुम बिन सुख न होवे न कोई पुत्र पाता। खान-पान का वैभव तुम बिन नहीं आता।। जय।। |
शुभ गुण सुंदर युक्ता क्षीर निधि जाता। रतन चतुर्दश तोकू कोई नहीं पाता।। जय।। |
श्री अहोई मां की आरती जो कोई गाता। उर उमंग अति उपजे पाप उतर जाता।। |
जय अहोई माता, जय अहोई माता। तुमको निसदिन ध्यावत हर विष्णु विधाता। टेक।। |
श्री ललिता मां की आरती |
श्री मातेश्वरी जय त्रिपुरेश्वरी! राजेश्वरी जय नमो नम:!! |
करुणामयी सकल अघ हारिणी! अमृत वर्षिणी नमो नम:!! जय शरणं वरणं नमो नम: श्री मातेश्वरी जय त्रिपुरेश्वरी...! |
अशुभ विनाशिनी, सब सुखदायिनी! खलदल नाशिनी नमो नम:!! भंडासुर वध कारिणी जय मां! करुणा कलिते नमो नम:!! जय शरणं वरणं नमो नम: श्री मातेश्वरी जय त्रिपुरेश्वरी...! |
भव भय हारिणी कष्ट निवारिणी! शरण गति दो नमो नम:!! शिव भामिनी साधक मन हारिणी! आदि शक्ति जय नमो नम:!! जय शरणं वरणं नमो नम:! श्री मातेश्वरी जय त्रिपुरेश्वरी...!! |
जय त्रिपुर सुंदरी नमो नम:! जय राजेश्वरी जय नमो नम:!! जय ललितेश्वरी जय नमो नम:! जय अमृत वर्षिणी नमो नम:!! जय करुणा कलिते नमो नम:! श्री मातेश्वरी जय त्रिपुरेश्वरी...! |
श्री गायत्री मां की आरती |
जयति जय गायत्री माता, जयति जय गायत्री माता। सत् मारग पर हमें चलाओ, जो है सुखदाता॥ ॥ जयति जय गायत्री माता...॥ |
आदि शक्ति तुम अलख निरंजन जगपालक कर्त्री। दु:ख शोक, भय, क्लेश कलश दारिद्र दैन्य हत्री॥ ॥ जयति जय गायत्री माता...॥ |
ब्रह्म रूपिणी, प्रणात पालिन जगत धातृ अम्बे। भव भयहारी, जन-हितकारी, सुखदा जगदम्बे॥ ॥ जयति जय गायत्री माता...॥ |
भय हारिणी, भवतारिणी, अनघेअज आनन्द राशि। अविकारी, अखहरी, अविचलित, अमले, अविनाशी॥ ॥ जयति जय गायत्री माता...॥ |
कामधेनु सतचित आनन्द जय गंगा गीता। सविता की शाश्वती, शक्ति तुम सावित्री सीता॥ ॥ जयति जय गायत्री माता...॥ |
ऋग, यजु साम, अथर्व प्रणयनी, प्रणव महामहिमे। कुण्डलिनी सहस्त्र सुषुमन शोभा गुण गरिमे॥ ॥ जयति जय गायत्री माता...॥ |
स्वाहा, स्वधा, शची ब्रह्माणी राधा रुद्राणी। जय सतरूपा, वाणी, विद्या, कमला कल्याणी॥ ॥ जयति जय गायत्री माता...॥ |
जननी हम हैं दीन-हीन, दु:ख-दरिद्र के घेरे। यदपि कुटिल, कपटी कपूत तउ बालक हैं तेरे॥ ॥ जयति जय गायत्री माता...॥ |
स्नेहसनी करुणामय माता चरण शरण दीजै। विलख रहे हम शिशु सुत तेरे दया दृष्टि कीजै॥ ॥ जयति जय गायत्री माता...॥ |
काम, क्रोध, मद, लोभ, दम्भ, दुर्भाव द्वेष हरिये। शुद्ध बुद्धि निष्पाप हृदय मन को पवित्र करिये॥ ॥ जयति जय गायत्री माता...॥ |
तुम समर्थ सब भांति तारिणी तुष्टि-पुष्टि द्दाता। सत मार्ग पर हमें चलाओ, जो है सुखदाता॥ ॥ जयति जय गायत्री माता...॥ |
जयति जय गायत्री माता, जयति जय गायत्री माता। सत् मारग पर हमें चलाओ, जो है सुखदाता॥ |
श्री एकादशी मां की आरती |
ॐ जय एकादशी, जय एकादशी, जय एकादशी माता । विष्णु पूजा व्रत को धारण कर, शक्ति मुक्ति पाता ।। ॐ।। |
तेरे नाम गिनाऊं देवी, भक्ति प्रदान करनी । गण गौरव की देनी माता, शास्त्रों में वरनी ।।ॐ।। |
मार्गशीर्ष के कृष्णपक्ष की उत्पन्ना, विश्वतारनी जन्मी। शुक्ल पक्ष में हुई मोक्षदा, मुक्तिदाता बन आई।। ॐ।। |
पौष के कृष्णपक्ष की, सफला नामक है, शुक्लपक्ष में होय पुत्रदा, आनन्द अधिक रहै ।। ॐ ।। |
नाम षटतिला माघ मास में, कृष्णपक्ष आवै। शुक्लपक्ष में जया, कहावै, विजय सदा पावै ।। ॐ ।। |
विजया फागुन कृष्णपक्ष में शुक्ला आमलकी, पापमोचनी कृष्ण पक्ष में, चैत्र महाबलि की ।। ॐ ।। |
चैत्र शुक्ल में नाम कामदा, धन देने वाली, नाम बरुथिनी कृष्णपक्ष में, वैसाख माह वाली ।। ॐ ।। |
शुक्ल पक्ष में होय मोहिनी अपरा ज्येष्ठ कृष्णपक्षी, नाम निर्जला सब सुख करनी, शुक्लपक्ष रखी।। ॐ ।। |
योगिनी नाम आषाढ में जानों, कृष्णपक्ष करनी। देवशयनी नाम कहायो, शुक्लपक्ष धरनी ।। ॐ ।। |
कामिका श्रावण मास में आवै, कृष्णपक्ष कहिए। श्रावण शुक्ला होय पवित्रा आनन्द से रहिए।। ॐ ।। |
अजा भाद्रपद कृष्णपक्ष की, परिवर्तिनी शुक्ला। इन्द्रा आश्चिन कृष्णपक्ष में, व्रत से भवसागर निकला।।ॐ।। |
पापांकुशा है शुक्ल पक्ष में, आप हरनहारी। रमा मास कार्तिक में आवै, सुखदायक भारी ।। ॐ ।। |
परमा कृष्णपक्ष में होती, जन मंगल करनी।। शुक्ल मास में होय पद्मिनी दुख दारिद्र हरनी ।। ॐ ।। |
जो कोई आरती एकादशी की, भक्ति सहित गावै। जन गुरदिता स्वर्ग का वासा, निश्चय वह पावै।। ॐ ।। |
ॐ जय एकादशी, जय एकादशी, जय एकादशी माता । विष्णु पूजा व्रत को धारण कर, शक्ति मुक्ति पाता ।। ॐ।। |
श्री खाटू श्याम जी की आरती |
ओम जय श्री श्याम हरे, बाबा जय श्री श्याम हरे। खाटू धाम विराजत, अनुपम रूप धरे।। ओम जय श्री श्याम हरे.. बाबा जय श्री श्याम हरे।। |
रतन जड़ित सिंहासन,सिर पर चंवर ढुरे। तन केसरिया बागो, कुण्डल श्रवण पड़े।। ओम जय श्री श्याम हरे.. बाबा जय श्री श्याम हरे।। |
गल पुष्पों की माला, सिर पार मुकुट धरे। खेवत धूप अग्नि पर, दीपक ज्योति जले।। ओम जय श्री श्याम हरे.. बाबा जय श्री श्याम हरे।। |
मोदक खीर चूरमा, सुवरण थाल भरे। सेवक भोग लगावत, सेवा नित्य करे।। ओम जय श्री श्याम हरे.. बाबा जय श्री श्याम हरे।। |
झांझ कटोरा और घडियावल, शंख मृदंग घुरे। भक्त आरती गावे, जय-जयकार करे।। ओम जय श्री श्याम हरे.. बाबा जय श्री श्याम हरे।। |
जो ध्यावे फल पावे, सब दुःख से उबरे। सेवक जन निज मुख से, श्री श्याम-श्याम उचरे।। ओम जय श्री श्याम हरे.. बाबा जय श्री श्याम हरे।। |
श्री श्याम बिहारी जी की आरती, जो कोई नर गावे। कहत भक्त-जन, मनवांछित फल पावे।। ओम जय श्री श्याम हरे.. बाबा जय श्री श्याम हरे।। |
जय श्री श्याम हरे, बाबा जी श्री श्याम हरे। निज भक्तों के तुमने, पूरण काज करे।। ओम जय श्री श्याम हरे.. बाबा जय श्री श्याम हरे।। |
ओम जय श्री श्याम हरे, बाबा जय श्री श्याम हरे। खाटू धाम विराजत, अनुपम रूप धरे।। ओम जय श्री श्याम हरे.. बाबा जय श्री श्याम हरे।। |