नवरात्रि के अवसर पर क्यों की जाती है केवल माता की पूजा?

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हिन्दू सनातन धर्म का महापर्व ''नवरात्र'' पुरे भारत में बहुत ही हर्षोउल्लास और भक्ति भाव के साथ मनाया जाता है तथा इस पर्व में भक्तो द्वारा माता के नो रूपों की पूजा की जाती है परन्तु कभी आपने ने सोचा है की आखिर पितृ-सत्तात्मक समाज में नवरात्रि पर माँ की ही पूजा क्यों होती है, आखिर इस अवसर पिता की आराधना क्यों नहीं होती ?

इसका कारण यह है की जब हम ईश्वर का ध्यान करते है तो हमारी कल्पनाओं में ईश्वर का भव्य रूप सामने आता है, परन्तु उनकी सर्वोच्चता तथा महानता को सिर्फ और सिर्फ माँ के ममता द्वारा ही परिभाषित किया जा सकता है।

जिस प्रकार एक शिशु जन्म लेने के बाद जब वह धीरे धीरे बड़ा होता है तो उसकी माता के सभी गुण भी उसमे समाहित होने लगते है तथा हर प्राणी में उसके माता से प्राप्त गुण समाहित होते है। ठीक इसी भांति हम ईश्वर को भी माता के रूप में देखते है तथा उनकी आराधना करते है। माता की सृजनात्मकता को पुरे संसार से जोड़ कर देखा जाता है। शायद समस्त संसार में हिन्दू धर्म ही एक ऐसा धर्म है जिसमे ईश्वर में माता की करुण भावना एवं ममता को इतना महत्व मिला है।

साल में दो बार नवरात्रि का त्यौहार मनाया जाता है, गर्मियों के प्रारम्भ होने पर तथा सर्दियों के प्रारम्भ होने पर। इन दोनों ही अवसरों पर मौसम में महत्वपूर्ण बदलाव होते है जो देवीय शक्ति की आराधना के लिए उपयुक्त माने गए है। ऐसी मान्यता है की माता अपने दिव्य शक्ति द्वारा पृथ्वी को वह महत्वपूर्ण ऊर्जा प्रदान करती है जिसके कारण वह सूर्य की परिक्रमा कर पाती है जिस कारण बहारी मौसम में इस प्रकार के बदलाव होते है।

माता के दिव्य शक्तियों के द्वारा प्रकृति का संतुलन बनाए रखने के लिए ही लोग माता को धन्यवाद देते है जो नवरात्री देवी के साधना और अध्यात्म का अद्भुत संगम होता है इसमें माता के विभिन्न स्वरूपों को पूजा जाता है। नवरात्रि का अर्थ होता है नौ राते तथा इन नौ रातो में तीन देवियो माँ दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती की नौ रूपों में पूजा की जाती है जिन्हे नवदुर्गा कहा जाता है।

प्रथम तीन दिन माँ दुर्गा की शक्ति रूप में पूजा करी जाती है, उसके अगले तीन दिनों में माता लक्ष्मी की पूजा धन तथा ऐश्वर्य प्राप्ति के लिए तथा अंतिम तीन दिनों में माता सरस्वती की पूजा ज्ञान और बुद्धि की प्राप्ति के लिए किया जाता है।

स्व-शुद्धिकरण : नवरात्रि के प्रथम तीन दिनों में माता की सबसे शक्तिशाली रूप की आराधना की जाती है तथा लोग माता से यह प्राथना करते है की माता उनके अंदर उपस्थित सभी बुराई और विकारों को मिटाकर उनकी अच्छाइयों को जागृत करें।

स्व-परिवर्तन : स्व शुद्धिकरण के पश्चात भक्त माता लक्ष्मी से समृद्धि और भौतिक सुख के साथ ही अपने अंदर शांति, धैर्य, दया और स्नेह आदि की भावना से परिपूर्ण होने का आशीर्वाद भी मांगते है. माता लक्ष्मी की पूजा से लोगो को अपने अंदर एक सकरात्मक ऊर्जा की अनुभूति होती है तथा एक अद्भुत शांति का अहसास होता है।

स्व-ज्ञान : माँ शक्ति और माँ लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त कर लोगो के पास सिर्फ एक ही इच्छा शेष रह जाती है और वह है ज्ञान. नवरात्री के अंतिम तीन दिनों में लोग माता सरस्वती की पूजा द्वारा उन्हें प्रसन्न कर उनसे ज्ञान एवं बुद्धि का आशीर्वाद प्राप्त करते है।