देव उठनी / देव प्रबोधिनी एकादशी / तुलसी विवाह व्रत 25 नवंबर 2020, बुधवार को रखें
जानिए क्यों होती है कार्तिक माह में तुलसी पूजन और तुलसी विवाह
कार्तिक का पावन महीना शुरू हो गया है. इस महीने में भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की जाती है. ऐसी मान्यता है कि कार्तिक के महीने में भगवान विष्णु पानी के अंदर रहते हैं. इस पावन माह के ब्रह्ममुहूर्त में स्नान करने से पाप-दोष का नाश होता है. इसलिए तो कार्तिक मास को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष नामक पुरुषार्थों को देने वाला माना गया है. इस माह माता तुलसी की पूजा की जाती है. तुलसी पूजन के साथ-साथ इसी माह तुलसी विवाह भी होता है. तो चलिए जानते हैं तुलसी पूजन की महिमा...
ब्रह्ममुहूर्त में स्नान की महिमा
कार्तिक मास में सूर्योदय पूर्व स्नान, दान और रामायण पारायण का महत्व तो सर्वविदित है. सदियों से यह हमारी सनातन परंपरा का अंग है. इस मास में तुलसी पूजा का भी बहुत महत्व है. काशी के पंचगंगा घाट पर आकाशी दीपों की मासपर्यन्त चलने वाली कतारें सज जाती हैं.
भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमद्भागवत में मास की व्याख्या करते हुए कहा है- पौधों में तुलसी मुझे प्रिय है, मासों में कार्तिक मुझे प्रिय है, दिवसों में एकादशी और तीर्थों में द्वारका मेरे हृदय के निकट है. मान्यता है कि आंवले के फल एवम तुलसी-दल मिश्रित जल से स्नान करें तो गंगा स्नान के समान पुण्यलाभ होता हैं. कार्तिक मास में मनुष्य की सभी आवश्यकताओं जैसे- उत्तम स्वास्थ्य, पारिवारिक उन्नति, देव कृपा आदि का आध्यात्मिक समाधान बड़ी ही आसानी से हो जाता है.
तुलसी पूजन और सेवन के लाभ
कार्तिक माह में तुलसी पूजन करने तथा सेवन करने का विशेष महत्व बताया गया है. जो व्यक्ति यह चाहता है कि उसके घर में सदैव शुभ कर्म हो, सदैव सुख शान्ति का निवास रहे उसे तुलसी की आराधना अवश्य करनी चाहिए. पुरानी मान्यता है कि जिस घर में शुभ कर्म होते हैं, वहां तुलसी हरी-भरी रहती है और जहां अशुभ कर्म होते हैं वहां तुलसी कभी भी हरी-भरी नहीं रहती.
तुलसी विवाह की पुरानी प्रथा
कार्तिक मास में तुलसी पूजन का विशेष महत्व बताया गया है. इसके समीप दीपक जलाने से मनुष्य अनंत पुण्य का भागी बनता है. जो तुलसी को पूजता है उसके घर मां लक्ष्मी हमेशा के लिए आ बसती है क्योंकि तुलसी में साक्षात लक्ष्मी का निवास माना गया है. तुलसी का एक नाम हरिप्रिया भी है, अर्थात वे हरि यानि भगवान विष्णु को अतिशय प्रिय हैं. इसी मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को तुलसी विवाह विधि-विधान से संपन्न कराया जाता है. उसी दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर में चार मास शयन के बाद जगते हैं, उस अवधि को सनातन परंपरा में चतुर्मास काल कहा जाता है. उस एकादशी को देवोत्थान एकादशी या लोकभाषा में देवठन एकादशी कहा जाता है.
तुलसी की पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार गुणवती नामक स्त्री ने कार्तिक मास में मंदिर के द्वार पर तुलसी की एक सुंदर वाटिका लगाई. उस पुण्य के कारण वह अगले जन्म में सत्यभामा बनी और सदैव कार्तिक मास का व्रत करने के कारण वह भगवान श्रीकृष्ण की पत्नी बनी.
ओम नमो नारायणाय